अग्निदेव कहते हे –वशिष्ट !
अब में वराहावतार की पापनाशिनी कथा का वर्णन करूँगा। पूर्वकाल में हिरणाक्ष नमक दैत्य असुरो का राजा था। वो देवताओ को जीतकर स्वर्गलोक में रहने लगा।
देवताओ ने भगवन विष्णु के पास जाकर स्तुति की। तब उन्होंने यग्नवराहरूप धारण किया और देवताओ के लिए कष्टकरूप उस दानव को दैत्यों सहित मारकर धर्म आदि दिवताओ की रक्षा की। उसके बाद श्रीहरि अंतर्धान हो गए। हिरणाक्ष का एक भाई था।
जो हिरण्यकशिपु के नाम से प्रसिद्द था। उसने देवताओ के यग्नभाग अपने आधीन कर लिए। और उन्सबके अधिकार छीन कर वो सवयं ही उनका उपभोग करने लगा।
भगवन ने नरसिंह रूप धारण करके उसके सहायक असुरोसहित उस दैत्य का वध किया। तत्पश्चात सम्पूर्ण देवताओ को अपने अपने पदपर प्रतिष्ठित कर दिया। उस समय देवताओ ने उन नरसिंह का स्तवन किया।
पूर्वकाल में देवता और असुरो में युद्ध हुवा। उस युद्ध में बलि आदि दैत्यों ने देवताओ को परास्त करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया। तब वे श्रीहरि की शरण में गए।
भगवन ने उन्हें अभयदान दिया और कषयब तथा अदिति की स्तुति से प्रसन्न हो वे अदिति के गर्भ से वामन रूप में प्रगट हुवे। उस समय दैत्यराज बलि यज्ञ कर रहे थे। भगवन उनके यज्ञ में गए और वह यजमान की स्तुतिका गान करने लगे।
वामन के मुख से वेदो का पाठ सुनकर राजा बलि उन्हें वर देने को उद्यत हो गए। और शुक्राचार्य के मना करने पर भी बोले — ब्राह्मण ! आपकी जो इच्छा हो मुझसे मांग ले , में आपको वह वास्तु अवश्य दूंगा।
वामन ने बलि से कहा — मुझे अपने गुरु के लिए तीन पग भूमि की आवश्यकता हे। वही दीजिये। बलि ने कहा अवश्य दूंगा। तब संकल्प का जल हाथ में पड़ते ही भगवन वामन अवामण हो गए।
उन्होंने विराट रूप धारण कर लिया। और भूलोक ,भुवलोक ,एवं स्वर्गलोक को अपने तीन पगो से नाप लिया। श्रीहरि ने बलि को सुतललोक में भेज दिया और त्रिलोकी का राज्य इंद्र को दे डाला। इंद्र ने देवताओ के साथ श्रीहरि का स्तवन किया। वे तीनो लोको के स्वामी बनकर सुखो से रहने लगे।
फिर अग्निदेव बोले — ब्राह्मण — अब में परशुराम अवतार का वर्णन करूँगा। सुनो। देवता और आदि का पालन करने वाले श्रीहरि ने जब देखा की भूमण्डल के क्षत्रिय उद्यत स्वाभाव के हो गए है।
तो वो उन्हें मरकर पृथ्वी का भार उतारने और सर्वत्र शांति स्थापित करने के लिए जमदग्नी के अंश द्वारा रेणुका के गर्भ से अवतीर्ण हुवे।भृगुनन्दन परशुराम शस्त्र विद्या पारंगत विद्वान थे।
उन दिनों कृतवीर्य का पुत्र राजा अर्जुन भगवन दत्तात्रेय की कृपा से हज़ार बाहे पाकर समस्त भूमण्डल पर राज्य करता था। एक दिन वह वनमे शिकार करने के लिए गया। वह बहुत थक गया। उस समय जमदग्नि मुनिने सेना सहित उनके आश्रम में निमंत्रित किया और कामधेनु के प्रभाव से सबको भोजन कराया।
राजा ने मुनीसे कामधेनु को अपने लिए माँगा। परन्तु उनको देने से इंकार कर दिया। तब उसने बल पूर्वक उस धेनु को छीन लिया। यह समाचार पाकर परशुराम जी ने हैहयपुरी में जाकर उसके साथ युद्ध किया और अपने फरसे से उसका मस्तक काटकर रणभूमि में उसको मार गिराया।
फिर वे कामधेनु को अपने साथ लेकर अपने आश्रम पर लौट आये। एक दिन जब परशुराम जी जब वन में गए हुवे थे। कृतवीर्य के पुत्रोंने आकर अपने पिता के वेर का बदला लेनेके लिए जमदग्नि मुनि को मार डाला। जब परशुराम लौट कर आये अपने पिता को मारा हुवा देख उनके मन में बड़ा क्रोध उठा।
उन्होंने इक्कीस बार समस्त भूमण्डल के क्षत्रियो का संहार किया। फिर कुरुक्षेत्र में पांच कुंड बनाकर वही अपने पितरो का तर्पण किया और सारी पृथ्वी कषयब मुनि को दान देकर वे महेंद्र पर्वत पर रहने लगे। इस प्रकार कूर्म,वराह ,नरसिंह ,वामन तथा परशुराम अवतार की कथा सुनकर मनुष्य स्वर्गलोक में जाता हे।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में वराह ,नरसिंह ,वामन तथा परशुरामावतार की कथा का वर्णन नमक चौथा अध्याय पूरा हुवा।
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